सरकार में बैठे लोगों को डर था कि रामलीला मैदान की भीड़ से उठकर कोई अन्ना उनकी सत्ता न हथिया ले। विपक्ष भयभीत था कि संसद या कतरे-ब्योंते मंचों पर जनता की बात कहने का उनका मुखौटा न छिन जाए।इसलिए दोनों एक हो गए।
अन्ना की शर्तो को प्रस्ताव बनाकर पारित कर दिया। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। ये बात और है कि ज्यादातर सांसद इस आंदोलन को संसद की संप्रभुता पर हमला बताते रहे लेकिन सही मायनों में यही जनतंत्र की मजबूती है।
बातचीत के दौर
23 अगस्त : पहली बार सरकार से सीधी बात।
नतीजा : गतिरोध कायम।
24 अगस्त : कोई वादा करने से सरकार का इनकार। सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने अनशन खत्म करने की अपील की। विलासराव देशमुख ने अन्ना से बातचीत की।
नतीजा : टीम अन्ना ने कहा हमारे साथ धोखा हुआ है। कल तक हमें सुन रहे थे। आज वे हमें डांट रहे हैं।
25 अगस्त: अन्ना की प्रधानमंत्री को चिट्ठी तीन मुद्दों पर संसद में चर्चा हो तो अनशन खत्म करने का वादा।
नतीजा : सरकार ने लोकपाल से जुड़े चार विधेयकों पर चर्चा का आश्वासन दिया।
क्या हुए षड्यंत्र?
>घर से निकलते ही अन्ना गिरफ्तार।
>तिहाड़ जेल भेजा।
>अनशन करने पर दसियों शर्ते।
>नौ दिन तक बातचीत नहीं।
>सरकार ने बार-बार स्टैंड बदला।
>पहले मांगों पर सहमति जताई, फिर मुकर गई।
>कई मसौदे मंगाए ताकि अन्ना का प्रस्ताव कमजोर हो।
>टीम अन्ना में कई बार फूट डालने की कोशिश।
>टीम अन्ना की राजनीतिक निष्पक्षता पर सवाल उठाए।
कैसे टूटा गतिरोध?
>विपक्ष के अन्ना के समर्थन में खड़े होने से सरकार बातचीत के लिए दबाव में आई।
>खुद के भ्रष्टाचार समर्थक साबित होने का डर।
>शनिवार को आपात संसद सत्र बुलाकर चर्चा।
क्यों डरी सरकार?
>प्रधानमंत्री, सांसदों के घरों का घेराव हो रहा था
>संसद तक अन्ना समर्थक पहुंच गए
>30 तारीख से जेल भरो आंदोलन का डर
क्यों माना संसद पर हमला?
>कानून बनाने का हक केवल सांसदों का, कोई दूसरा दबाव डालकर कैसे मनचाहा कानून बनवा सकता है।
>जनसमर्थन से अन्ना हजारे और टीम के चुनकर संसद में आने की संभावना ।
पूरी जीत होना बाकी है: अन्ना हजारे
"यह जनलोकपाल की आधी जीत है। पूरी जीत बाकी है। ..और यह जो आधी जीत है वह देशभर के भाइयों, बहनों, युवाओं, बच्चों और बच्चियों की जीत है। प्रस्ताव पारित करने के लिए संसद का धन्यवाद। सांसदों का धन्यवाद। मैं अपना अनशन सुबह 10 बजे तोडूंगा। आप सब जश्न मनाएं लेकिन शांति से।"
20 साल से आंदोलन ही आंदोलन
>1991 में भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन की शुरुआत रालेगांव सिद्धि में।
>9 अगस्त 2003 से 17 अगस्त 2003 तक कांग्रेस-एनसीपी सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ भूख हड़ताल की। मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जांच समिति बनाई, जिसकी रिपोर्ट पर चार मंत्रियों की कुर्सी गई।
>महाराष्ट्र में सूचना का अधिकार कानून लागू करने के लिए आंदोलन छेड़ा, जिसे बाद में केंद्र सरकार ने 2005 में अपनाया।
>9 अगस्त 2006 को सूचना का अधिकार कानून में संशोधन के खिलाफ भूख हड़ताल की, जो 19 अगस्त 2006 में खत्म हुई। सरकार ने संशोधन रद्द कर दिया।
>अनाज से बनी शराब पर प्रतिबंध के लिए शिरडी में 5 दिन की भूख हड़ताल। सरकार ने 20 अगस्त 2009 को सरकार ने प्रतिबंध लगाया।
अन्ना की शर्तो को प्रस्ताव बनाकर पारित कर दिया। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। ये बात और है कि ज्यादातर सांसद इस आंदोलन को संसद की संप्रभुता पर हमला बताते रहे लेकिन सही मायनों में यही जनतंत्र की मजबूती है।
बातचीत के दौर
23 अगस्त : पहली बार सरकार से सीधी बात।
नतीजा : गतिरोध कायम।
24 अगस्त : कोई वादा करने से सरकार का इनकार। सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने अनशन खत्म करने की अपील की। विलासराव देशमुख ने अन्ना से बातचीत की।
नतीजा : टीम अन्ना ने कहा हमारे साथ धोखा हुआ है। कल तक हमें सुन रहे थे। आज वे हमें डांट रहे हैं।
25 अगस्त: अन्ना की प्रधानमंत्री को चिट्ठी तीन मुद्दों पर संसद में चर्चा हो तो अनशन खत्म करने का वादा।
नतीजा : सरकार ने लोकपाल से जुड़े चार विधेयकों पर चर्चा का आश्वासन दिया।
क्या हुए षड्यंत्र?
>घर से निकलते ही अन्ना गिरफ्तार।
>तिहाड़ जेल भेजा।
>अनशन करने पर दसियों शर्ते।
>नौ दिन तक बातचीत नहीं।
>सरकार ने बार-बार स्टैंड बदला।
>पहले मांगों पर सहमति जताई, फिर मुकर गई।
>कई मसौदे मंगाए ताकि अन्ना का प्रस्ताव कमजोर हो।
>टीम अन्ना में कई बार फूट डालने की कोशिश।
>टीम अन्ना की राजनीतिक निष्पक्षता पर सवाल उठाए।
कैसे टूटा गतिरोध?
>विपक्ष के अन्ना के समर्थन में खड़े होने से सरकार बातचीत के लिए दबाव में आई।
>खुद के भ्रष्टाचार समर्थक साबित होने का डर।
>शनिवार को आपात संसद सत्र बुलाकर चर्चा।
क्यों डरी सरकार?
>प्रधानमंत्री, सांसदों के घरों का घेराव हो रहा था
>संसद तक अन्ना समर्थक पहुंच गए
>30 तारीख से जेल भरो आंदोलन का डर
क्यों माना संसद पर हमला?
>कानून बनाने का हक केवल सांसदों का, कोई दूसरा दबाव डालकर कैसे मनचाहा कानून बनवा सकता है।
>जनसमर्थन से अन्ना हजारे और टीम के चुनकर संसद में आने की संभावना ।
पूरी जीत होना बाकी है: अन्ना हजारे
"यह जनलोकपाल की आधी जीत है। पूरी जीत बाकी है। ..और यह जो आधी जीत है वह देशभर के भाइयों, बहनों, युवाओं, बच्चों और बच्चियों की जीत है। प्रस्ताव पारित करने के लिए संसद का धन्यवाद। सांसदों का धन्यवाद। मैं अपना अनशन सुबह 10 बजे तोडूंगा। आप सब जश्न मनाएं लेकिन शांति से।"
20 साल से आंदोलन ही आंदोलन
>1991 में भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन की शुरुआत रालेगांव सिद्धि में।
>9 अगस्त 2003 से 17 अगस्त 2003 तक कांग्रेस-एनसीपी सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ भूख हड़ताल की। मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जांच समिति बनाई, जिसकी रिपोर्ट पर चार मंत्रियों की कुर्सी गई।
>महाराष्ट्र में सूचना का अधिकार कानून लागू करने के लिए आंदोलन छेड़ा, जिसे बाद में केंद्र सरकार ने 2005 में अपनाया।
>9 अगस्त 2006 को सूचना का अधिकार कानून में संशोधन के खिलाफ भूख हड़ताल की, जो 19 अगस्त 2006 में खत्म हुई। सरकार ने संशोधन रद्द कर दिया।
>अनाज से बनी शराब पर प्रतिबंध के लिए शिरडी में 5 दिन की भूख हड़ताल। सरकार ने 20 अगस्त 2009 को सरकार ने प्रतिबंध लगाया।